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संत पीपाजी
संत पीपाजी
- राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के प्रारम्भकर्ता संत पीपा का जन्म गागरोनगढ़ (वर्तमान झालावाड़ जिले में) के नरेश कड़ावा राव खींची के यहाँ 1425 ई. में चैत्र पूर्णिमा के दिन हुआ था।
- इनके बचपन का नाम राजकुमार प्रतापसिंह था।
- इन्होंने रामानन्द से दीक्षा लेकर राजस्थान में निर्गुण भक्ति परम्परा का सूत्रपात किया।
- राजस्थान में दर्जी समुदाय के लोग पीपाजी को आराध्य देवता मानते है।
- बाड़मेर जिले के समदड़ी कस्बे में इनका विशाल मन्दिर स्थित है, जहाँ प्रतिवर्ष विशाल मेला भरता है।
- इसके अलावा गागरोन (झालावाड़) एवं मसूरिया (जोधपुर) में भी इनकी स्मृति में मेलों का आयोजन होता है।
- संत पीपा ने 'चिंतावनी जोग' नामक गुटका की रचना की, जिसका लिपि काल संवत् 1868 दिया गया है।
- संत पीपाजी ने अपना अन्तिम समय टोंक जिले के टोडा ग्राम में बिताया, वहीं पर चैत्र कृष्ण नवमी को परलोक गमन हुए जो आज भी 'पीपाजी की गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।
saint pipa ji
- Saint Pipa, the initiator of the Bhakti movement in Rajasthan, was born on the day of Chaitra Purnima in 1425 AD at King Kadava Rao Dhiki of Gagrongarh (in present-day Jhalawar district).
- His childhood name was Rajkumar Pratap Singh.
- He initiated the Nirguna Bhakti tradition in Rajasthan by taking initiation from Ramanand.
- People of the tailor community in Rajasthan consider Pipaji to be an adorable deity.
- His huge temple is located in Samdari town of Barmer district, where a huge fair is held every year.
- Apart from this, fairs are also organized in his memory in Gagron (Jhalawar) and Masuria (Jodhpur).
- Saint Pipa composed a gutka named 'Chintawani Jog', whose script has been given in the period of 1868.
- Saint Pipaji spent his last time in Toda village of Tonk district, while on Chaitra Krishna Navami he went to the next world, which is still famous as 'Pipaji's cave'.