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कैलादेवी
कैलादेवी
- उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से इस मंदिर का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है।
- करौली के यदुवंश (यादव राजवंश) की कुलदेवी है।
- करौली में कालीसिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर कैलादेवी का भव्य मंदिर राजा राघवदास ने बनवाया करौली में चैत्र शुक्ल अष्टमी को लक्खी मेला भरता है।
- इस मंदिर के सामने बोहरा की छतरी' स्थित है। कैला देवी के मेले में भक्त लांगुरिया लोकगीत गाते हुए लांगुरिया लोकनृत्य करते हैं
- मेले के दौरान महिलाये सुहाग के प्रतीक के रूप में हिंदू धर्म अनुसार हरे रंग की चूड़ियाँ और सिंदूर की खरीददारी करती है और नव दम्पति एक साथ दर्शन करते है और मेले का आनंद लेते है
- यहाँ पर बच्चो के मुंडन की परंपरा भी देखने को मिलती है
- केलादेवी के मंदिर में सबसे अधिक यात्री उत्तरप्रदेश से आते है
kaladevi
- One of the famous Shaktipeeths of North India, the history of this temple is about a thousand years old.
- She is the Kuldevi of the Yaduvansh (Yadav dynasty) of Karauli.
- In Karauli, the grand temple of Kailadevi on Trikuta mountain on the banks of Kalisil river, built by King Raghavdas, fills the Lakkhi fair on Chaitra Shukla Ashtami in Karauli.
- Bohra ki Chhatri is situated in front of this temple. Devotees perform languria folk dance while singing languria folk songs at the fair of Kaila Devi
- During the fair, women buy green bangles and vermilion according to Hindu religion as a symbol of honeymoon and the newlyweds visit together and enjoy the fair.
- The tradition of shaving children is also seen here.
- Most of the travelers come from Uttar Pradesh to the temple of Keladevi.