how to increase your memory?

 अपनी याददाश्त कैसे बढ़ाएँ

हम पिछले अध्याय में बता चुके हैं कि मनुष्य का बेशकीमती आभूषण, औजार या शक्ति उसका दिमाग होता है। मनुष्य का अस्तित्व और उसकी पहचान उसकी बुद्धिमत्ता एवं ज्ञान पर निर्भर करती है।   

मनुष्य के प्रत्येक कार्य की सफलता भी उसके मस्तिष्क के सुचारु उपयोग पर ही निर्भर करती है, क्योंकि मनुष्य का मस्तिष्क यानी दिमाग ही सभी निर्णय लेता है कि उसे क्या करना है, कब करना है और कैसे करना है? अतः मस्तिष्क ही इंद्रियों को आदेश देता है, उनको नियंत्रित करता है और दूसरों की तुलना में उसके बौद्धिक ज्ञान के जरिए श्रेष्ठ बनाता है। इस प्रकार मनुष्य को जीवन में सफलताओं के चरम तक पहुँचाने में मस्तिष्क ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अब सवाल यह है कि क्या याददाश्त बढ़ाई जा सकती है?

 जवाब है-हाँ, याददाश्त बढ़ाई जा सकती है।

मनुष्य का मस्तिष्क चाकू की धार के समान होता है, जिसका नियमित इस्तमाल कर पर उसकी धार सदैव पैनी बनी रहती है, ठीक इसी प्रकार मस्तिष्क का ठीक से प्रयोग अथवा विकसित करने पर बुद्धि को भी जंग लग जाता है।




लोग यह सोचते हैं कि उनकी मानसिक स्थिति पर उनका वश नहीं चलता। उनके विचार उनकी मनोदशा और इच्छा के अनुरूप नहीं हो सकते। ऐसे लोग मानते हैं कि ऐसी निराशाजनक मानसिक स्थिति बाप-दादा से उन्हें विरासत में ही मिली है। वे इसे कतई नहीं बदल सकते। ऐसा सोचना पूरी तरह गलत है। आप अपने विचार और मानसिक स्थिति को ठीक उसी तरह बदल सकते हैं, जिस तरह से अपने कपड़े और वेशभूषा बदलते हैं। इसके लिए आप अपने अंदर उत्साह और साहस का संचार करें, सफलता की कल्पना करें तथा रोजाना अपने मानसिक विकास के लिए इन तकनीकों का प्रयोग कर अभ्यास करें।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि आप अपनी याददाश्त बढ़ाने मानसिक विकास करने में अवश्य सफल होंगे। _मानसिक विकास एवं याददाश्त बढ़ाने की प्रक्रिया में सबसे पहले तो दिमागी शब्दकोश से 'असंभव' शब्द हटा दें। कारण यह है कि आपके मानसिक विकास और याददाश्त बढ़ाने में यह 'असंभव' शब्द एक बहुत बड़ी बाधा है। इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है। आप यह कदापि सोचें कि आपका जन्म निराश होकर मृत्यु को गले लगाने के लिए हुआ है। 

सच तो यह है कि आप इस दुनिया में अपने विचारों, अपने सत्कार्यों और अपनी मधुर मुसकान से चार चाँद लगाने आए हैं। इसलिए आशावादी बनें और हमेशा सफलता की कामना करें। यदि हम बंजर भूमि को जोतकर उपजाऊ बना सकते हैं तो क्या हम अपने मन से निराशा, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, डर इत्यादि जैसी खर-पतवार यानी घास-फूस को उखाड़कर वहाँ सुंदर सुगंधित फूल नहीं खिला सकते?

खिला सकते हैं-जरूर खिला सकते हैं। इसके लिए चाहिए स्वस्थ सोच, सकारात्मक नजरिया और स्वयं पर विश्वास।

 अपने आपको, क्या यह सब आप में है? यदि हाँ, तो आप एक स्वस्थ मस्तिष्क के मालिक हैं और स्वस्थ मस्तिष्क को विकसित करके सफलता की उच्चतम स्थिति को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

 


भूलना याददाश्त की कमजोरी नहीं

भूलना याददाश्त की कमजोरी नहीं, मगर कुछ लोग भूलने की प्रक्रिया को बीर समझकर चिंतित हो उठते हैं कि उनकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है। इस भ्रम के चलते वे अनेक दूसरे रोगों, जैसे-चिंता, कुंठा आदि के शिकार हो जाते हैं।

भूलना कोई बीमारी नहीं है और ही इसका अर्थ यह है कि आपकी याददाश्त कमजोर हो रही है। भूलना प्रकृति-प्रदत्त एक अति आवश्यक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क का संतुलन बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। कारण, अगर आप पूरे दिन की घटी सभी घटनाओं को याद रखने की कोशिश करेंगे तो मन को दुखाने और पीड़ा पहुँचानेवाली बहुत सी नकारात्मक सूचनाओं से आपके मस्तिष्क में 'विस्फोट' हो जाएगा और आपकी याद रखने की क्षमता भी नष्ट हो जाएगी। 'विस्फोट' का तात्पर्य यहाँ बम जैसे किसी धमाके से नहीं है। इसका मतलब मस्तिष्क पर पड़नेवाले अत्यधिक बोझ, तनाव एवं दबाव से है। कहने का अर्थ यह है कि मस्तिष्क जितना तनाव-मुक्त होता है उतना ही ज्यादा अच्छा सोचता और काम करता है। इसके विपरीत स्थिति में मस्तिष्क कुंद होने लगता है।

विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक शोध से पता चला है कि मानव-मस्तिष्क में सूचनाओं को एकत्रित करने की जो प्रक्रिया है, वह हमेशा उन्हीं सूचनाओं को स्टोर करती है, जिन्हें मानव प्राथमिकता देता है। जिन सूचनाओं और घटनाओं को मानव-मस्तिष्क अनावश्यक मानता है, उन्हें स्मृति-पटल से मिटाता रहता है, ताकि आनेवाली नई सूचनाओं, घटनाओं और बातों को मस्तिष्क में पर्याप्त स्थान मिल सके। यदि ऐसा हो तो रोजाना घटनेवाली घृणा, द्वेष, क्रोध आदि से भरी सभी घटनाएँ मस्तिष्क में एकत्र होने लगेंगी, जिस कारण मस्तिष्क में 'विस्फोट' होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।

याद रखें। दूसरों की गलतियों को क्षमा करना अच्छी बात है और उन्हें भूल जाना उससे भी अच्छा


बात है, क्योंकि दूसरों की गलतियों को भूल जाने से हमें आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। इसलिए, हमें दूसरों से अच्छा व्यवहार बनाए रखने के लिए, उनकी गलतियों को भूलना बहुत जरूरी है।

परमपिता परमेश्वर ने बहुत ही कुशलता से मानव-मस्तिष्क की रचना की है। यदि कुछ बातों को भूल भी जाते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया इसलिए आप इसे कोई रोग या याददाश्त की कमजोरी मानकर चिंतित हों।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, मानव-मस्तिष्क प्रतिदिन घटी 90 से 95 प्रतिशत घटना सूचनाओं को डंप मेमोरी में भेज देता है।