bharat ke uttari maidan

 

भारत का भौतिक स्वरूप 

भूआकृतिक दृष्टि से भारत को चार भागों में बाँटा जाता है
1. उत्तरी पर्वतीय भूभाग
2. बृहत् मैदान
3. प्रायद्वीपीय उच्च भूमि
4. भारतीय तट एवं द्वीप समूह

1. उत्तरी पर्वतीय भूभाग :

 इसमें हिमालय, हिंदुकुश एवं पटकाई पर्वत श्रृंखला शामिल हैं।
 इसका निर्माण भारतीय एवं यूरेशियन प्लेटों के विवर्तनिक विक्षोभ के फलस्वरूप 50 मिलियन वर्ष पहले आरंभ हुआ। इसमें दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत शृंखलाएं स्थित हैं।
ये ध्रुवीय प्रदेश से आने वाली ठंडी हवाओं को रोककर भारत को नैसर्गिक उष्णता प्रदान करते हैं। ये मानसूनी हवाओं को रोककर भारतीय भू-भाग में वर्षा भी करवाती हैं।
देश के लगभग 10.6% क्षेत्र पर पर्वत, 18.5% क्षेत्र पर पहाड़ियाँ, 27.7% पर पठार तथा 43.2% पर मैदान विस्तृत है। यह नवीन मोड़दार पर्वतमाला है। 
यह पर्वत श्रेणी अनेक पर्वतों का समूह है। मुख्य श्रेणी को हिमालय श्रेणी के नाम से पुकारते हैं।

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इस हिमालय के उत्तरी पश्चिमी भाग में कारोकोरम लद्दाख, जास्कर श्रेणियाँ मिलती है 
जबकि दक्षिण-पूर्व में नागा, पटकोई, मणिपुर एवं अराकान श्रेणियाँ मिलती है।

वलयों की तीव्रता तथा निर्माण की आयु के आधार पर हिमालय को चार सामान्तर क्षेत्रों में बाँटा जाता है।
 (1) ट्रांस हिमालय/तिब्बत हिमालय 
(2) वृहत्/महान हिमालय 
(3) लघु/मध्य हिमालय
(4) बाह्य हिमालय/शिवालिक 

1. ट्रांस हिमालय 
  • यह मूलतः यूरेशिया प्लेट का एक खंड है।
  • इसका निर्माण हिमालय से पहले हो चुका था।
  • भारत की सबसे ऊँची चोटी K2या गाडबिन आस्टिन (8611 मी.) है जो काराकोरम की सर्वोच्च चोटी है।
  • यह अवसादी चट्टानों का बना है।
 2. महान/हिमाद्रि हिमालय 
  • इसकी औसत ऊँचाई 6100 मी.. 2500 किमी. और चौड़ाई 25 किमी. यह पश्चिम में नंगा पर्वत से पूर्व में नाम पर्वत तक स्थित है।
  • वृहत् हिमालय मध्य हिमालय से मेन सेंट्रल थ्रस्ट के द्वारा अलग होती है।
  • विश्व की सर्वोच्च चोटी माउण्ट एवरेस्ट इसी हिमालय पर अवस्थित है।
3. लघु या मध्य हिमालय

  • इसकी औसत ऊँचाई 1800 से 3000 मी. है।
  • पीरपंजाल श्रेणी इसका पश्चिमी विस्तार है। 
  • इस श्रेणी के दक्षिण-पूर्व की ओर धौलधा, नाग, रीवा मसूरी आदि श्रेणियां पायी जाती है।
  • इन श्रेणियों पर शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, दार्जिलिंग एवं डलहौजी नगर स्थित है। 
  • मध्य और महान हिमालय के बीच पश्चिम में कश्मीर की घाटी तथा पूर्व में काठमाण्डु घाटी है।
  • यहाँ पर कोणधारी वन मिलते हैं तथा ढालों पर छोटे-छोटे घास के मैदान पाये जाते हैं जिन्हें कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, सोनमर्ग) - और उत्तराखंड में वग्याल और पयार कहते हैं। 
4. बाह्य हिमालय/शिवालिक 
  • इसकी औसत ऊँचाई 900 से 1200 मी. के बीच है
  • शिवालिक एवं मध्य हिमालय के बीच अनेक घाटियाँ पायी जाती है। 
  • इसको पश्चिम एवं मध्य भाग दून / देहरादून और पूर्व में द्वार जैसे हरिद्वार कहते है।
  • हिमालय की दो घुमाव युक्त एव मोड़दार भुजाएं हैं। 
  • पहली हिन्दुकुश, सलेमान और किरधर श्रीणया के नाम से है।
  • इसमें खैबर, बोलन और गोमल आदि दरे हैं ओर उत्तर-पूर्वी में गारो, खासी. जयन्तिया, पटकोई, लुसाई की पहाड़ियां आदि हैं एवं इसी का घुमावदार विस्तार भारत म्यांमार सीमा पर अराकानयोमा पर्वत के नाम से फैला है।
द्वीप समूह 

  • भारत में 247 द्वीप है जो बंगाल की खाडी  (204) तथा अरब सागर (36 द्वीप) में बिखरे हैं।
  • अंडमान निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में स्थित भारत का सबसे महत्वपूर्ण द्वीप है।
  • इनमें नारकोंडम, सुसुप्त एवं बैरन द्वीप सक्रिय ज्वालामुखी है।
  • अंडमान द्वीप की सर्वोच्च चोटी सैंडल पीक है।
  • भारत का दक्षिणतम बिन्दु पिगमेलियन प्वाइन्ट (इंदिरा प्वाइंट) ग्रेट निकोबार पर स्थित है।
  • पम्बन द्वीप मन्नार की खाड़ी में स्थित है।
  • हरिकोटा द्वीप आन्ध्रप्रदेश में स्थित है।
  • लक्षद्वीप अरब सागर में स्थित प्रवाल भित्ति द्वीप है।
  • अमीन दीव लक्षद्वीप का सबसे बड़ा द्वीप है।
  • कावारत्ती लक्षद्वीप की राजधानी है।

हिमालय पर्वत का विस्तार पश्चिम में जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक है। हिमालय की अधिकांश शृंखलाएं वर्ष भर हिमाच्छादित रहती हैं। 
  • कराकोरम जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित है इसकी 60 से अधिक चोटियां 7000 मीटर ऊँची हैं। 
  • यह श्रृंखला 500 किमी. लंबी है और ध्रुवों के बाद सबसे अधिक हिमाच्छादित है।
  • सियाचिन और बियाफो ग्लेशियर इसी क्षेत्र में अवस्थित हैं। सियाचिन दुनिया की दूसरी बड़ी ग्लेशियर है। गिलगिट, सिंधु एवं श्योक नदियाँ कराकोरम की दक्षिणी सीमा निर्धारित करती हैं

पटकाई बुम या पूर्वांचल म्यांमार से लगती भारत की पूर्वी सीमा पर स्थित है।
ये उसी प्रक्रिया द्वारा निर्मित हैं, जिसके द्वारा हिमालय की श्रृंखला का निर्माण हुआ है।
इसकी मुख्य विशेषता है-खड़ी ढाल, गहरी घाटियां एवं कोण की आकार की चोटियां।
यह हिमालय की तरह विस्तृत नहीं है। 
इसमें तीन पहाड़ी शृंखलाए शामिल हैं, पटकाई बुम, गारो-खासी-जयंतिया एवं लुसाई पहाड़ी।

गारो-खासी जयंतिया श्रृंखला मेघालय में स्थित है। 
चेरापूंजी के पास मासिनराम गांव इसी श्रृंखला के पार्श्ववर्ती भाग में स्थित है। यह दुनिया के सबसे आर्द्र स्थानों में एक है।

2. वृहत् मैदान :

  •  सिंधु-गंगा का मैदान, जिसे वृहत् मैदान के नाम से भी जाना जाता है, सिंधु और गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी श्रृंखला का सबसे बड़ा मैदान है।
  • यह हिमालय पर्वत के समानांतर जम्मू-कश्मीर से लेकर असम तक फैला हुआ है। 
  • यह 7,00,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • गंगा और सिंधु इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां हैं।
  • व्यास, यमुना, गोमती, रावी, चिनाब, सतलज एवं चम्बल इसकी सहायक नदियां हैं।

वृहत् मैदान को चार भागों में बाँटा जाता है-
  • भाबर क्षेत्र
  • तराई क्षेत्र, 
  • बांगर क्षेत्र
  • खादर क्षेत्र। 
भाबर हिमालय से लगा निचला भू-भाग है।
यह अपेक्षाकृत बड़े चट्टानों से निर्मित है। इसकी सरंध्रता इतनी अधिक है कि समूची नदी इसमें लुप्त हो जाती है। यह मैदान अत्यंत संकरी पट्टी में फैला हुआ है, जिसकी चौड़ाई 7 से 15 किमी. है।
तराई नवीन जलोढ़ मैदान हैं। ये अत्यंत नम और घने जंगलों वाले क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में वर्षा भी अधिक होती है। - यह अनेक प्रकार के वन्य जीवों का आवास स्थल है।

बांगर नदी की बाढ़ सीमा से ऊपर पुरानी जलोढ़क से निर्मित उच्च भूमि है। नवीन कांप द्वारा निर्मित नदियों के बाढ़ मैदान को खादर कहा जाता है। प्रतिवर्ष बाढ़ों के दौरान रेत की नई परत जमा होने से इसकी उर्वरता बनी रहती है।
गंगा-सिंधु का मैदान समतल भूभाग में फैला हुआ है। यहाँ नहरों से सिंचाई होती है। इस क्षेत्र में भूजल स्तर काफी ऊँचा है।
ये मैदान दुनिया के सबसे सघन खेती वाले क्षेत्र हैं। चावल और गेहूँ इस क्षेत्र की मुख्य फसल है। यह मैदान सघन आबादी का क्षेत्र है।

3. प्रायद्वीपीय उच्च भूमि : 

प्रायद्वीपीय उच्च भूमि तीन पठारों के मिलने से बना है।

ये तीन पठार हैं-पश्चिम में मालवा पठार, दक्षिण में दक्कन का पठार एवं पूर्व में छोटानागपुर का पठार।

मालवा का पठार राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं गुजरात में फैला हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई 500 मीटर है एवं इसका ढलान उत्तर की ओर है। चम्बल इस क्षेत्र की मुख्य नदी है। 
दक्कन का पठार एक लंबा त्रिभुजाकार भूभाग है। यह उत्तर में विंध्य श्रेणी से घिरा हुआ है। यह एक चौरस क्षेत्र है और इसकी औसत ऊँचाई 300-600 मी. है। पश्चिम से पूर्व इसका ढलान सामान्य है। प्रायद्वीपीय क्षेत्र की नदियां गोदावरी, कृष्णा, कावेरी एवं नर्मदा इसी से निकलती हैं।
छोटानागपुर का पठार पूर्वोत्तर भारत में स्थित है। इसका अधिकांश भाग झारखंड में फैला हुआ है, शेष भाग का विस्तार ओडिशा, बिहार और छत्तीसगढ़ में है। इसका कुल क्षेत्रफल 65,000 वर्ग किमी है। राँची का पठार इसी का भाग है, जो वनाच्छादित है।
छोटानागपुर का पठार कई धातु अयस्क कोयले का भंडार है।

4. भारतीय तट एवं द्वीप : 

पूर्वी तटीय का विस्तार पूर्वी घाट से बंगाल की खाई यह दक्षिण में तमिलनाडु से लेकर उस पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है। ये तटीय मैदान महानदी, गोदावरी, काले और कृष्णा नदियों के जलोढ़ एवं डेल्टार निर्मित हैं। इस क्षेत्र में उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी मानसून दोनों से वर्षा होती है। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 1000 मिमी से 3000 मिमी तक होती है। इस मैदान की चौड़ाई 100 से 130 किमी है। कोरोमंडल तट इसी मैदानी क्षेत्र में स्थित है।

 पश्चिमी तटीय मैदान एक संकरा मैदानी भूभाग है, जो पश्चिमी घाट से अरब सागर तक फैला हुआ है। इसकी चौड़ाई 50 से 100 किमी है। इसका विस्तार उत्तर में गुजरात के तट से दक्षिण में केरल के तट तक है। इस क्षेत्र में बहने वाली अधिकांश नदियां एश्चुअरी का निर्माण करती हैं। ताप्ती, नर्मदा एवं मंडोवी आदि इस क्षेत्र की मुख्य नदियां हैं। कोंकण और मालाबार तट इसी क्षेत्र में स्थित हैं।

लक्षद्वीप एवं अंडमान-निकोबार भारत के दो प्रमुख द्वीप समूह हैं। लक्षद्वीप केरल तट से लगभग 300 किमी दूर अरब सागर में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 32 वर्ग किमी. है। यह मुख्य रूप से प्रवाल भितियों द्वारा निर्मित है। यह 36 द्वीपों का समूह है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एक-दूसर से 10° चैनल द्वारा अलग किए जाते है। मुख्य स्थल से इनकी निकटतम दूरी लगभग 920 किमी. है।

इसके सुदूर दक्षिणी भाग को इंदिरा प्वाइट कहते हैं।

• अन्य महत्वपूर्ण द्वीप हैं-

दीव (पूर्व में पुर्तगाल का उपनिवेश), माजुली (एशिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप), एलीफेंटा (मुम्बई तट पर भारत के स्थित), श्रीहरिकोटा (आंध्र तट पर स्थित), साल्सेट द्वीप (जिसपर मुम्बई बसा है)

mahtvapuran parvat shreni in hindi

 

                 महत्वपूर्ण पर्वत श्रृख्ंला 

कारकोरम श्रृंखला:-

  • पामीर से लेकर पुर्व मे गिलगिट नदी पर स्थित है यह 600 मीटर लंबा व 120-140 मीटर चौडा है 
  • प्राचीन नाम कृष्णनगरी है 
  • सियाचिन बाल्टोरा बियाफो तथा हिस्यर ये चारो काराकोरम मे सबसे बडे हिंमखंड है
  • उच्चतम चोटी गॉड़विन ऑस्टिन 8611 मीटर है 
  • अन्य महत्वपुर्ण चोटियाँ- गाशेरबु्रम या गुप्त चोटी, चौड़ी चोटी तथा गाशेरब्रुरम 2
  • विश्व की सबसे बडी ढाल वाली चोटी राकापोशी यहीं स्थित है।
  • काराकोरम श्रृंखला की उतरोतर सीमा पामीर, अघिल पर्वत तथा यारकंद नदी है तथा दक्षिणोतर सीमा सिंधू नदी तथा इसकी शाखा श्योक है।

लघाख श्रृंखला:- 

  • सिंधु-सांग्पो सीवन क्षेंत्र के उत्तर तथा काराकोरम के दक्षिण, सिंधु नदी एंव श्योक के बीच स्थित है।

जास्कर श्रंणी:-

  • मुख्यतः हिमालय पर्वत का पश्चिमी भाग, टांस हिमालय के दक्षिण मे स्थित है।
  • जास्कर श्रंणी के उत्तरी पश्चिमी भाग का निर्माण करता है लेकिन इसकी भौगिलिक स्थिती करता है लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिती कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एंव गढ़वाल क्षेत्र मे सीमित है।
  • इसमे अवस्थित नंगा पर्वत भारत के हिमालय श्रृंखला की द्धितिय सबसे बडी चोटी है।

धौलागिरी:-

  • नंगा पर्वत का पुर्वी विस्तार है तथा यह नेपाल मे अवस्थित है।

पीरपंजाल श्रेणीः-

  • कश्मीर एंव पंजाब मे अवस्थित तथा इसका विस्तार झेलम नदी से ऊपरी व्यास नदी तक 300 किमी. है।
  • कश्मीर की घाटी द्धारा यहह जास्कर श्रेणी से अलग होता है।

धौलाधर श्रेणी:-

  • लघु हिमालय की दक्षिणतम श्रेणी
  • कहीं कहीं इसकी ऊँचाई 4000 मी. से अधिक है।
  • यह पुर्ण मे महाभारत श्रेणी के रूप् में विस्तृत है।

पुर्वाचल:-

  • हिमालय श्रेणी, पूर्व मे दिंहाग गॉर्ज को पार करने के बाद उत्तरी दक्षिणी झुकाव के साथ पठार की एक श्रुंखला का निर्माण करते हुए दक्षिण की ओर मुड जाता है।

मिशमी पहाडियाँ:-

  • पूर्वाचल पहाडियाँ को उच्चतम श्रृंखला जो अरूणाचल प्रदेश के उत्तरी पूर्वी भाग मे अवस्थित है।

पटकाई बुमः-

  • एक अभिनति श्रृंखला अरूणाचल प्रदेश तथा नागालैण्ड मे उत्तर दक्षिण मे विस्तारित है।

नगा पहाडियाँ:-

  • नागालैंड़ तथा म्यांमार के बीच जल विभाजक का निर्माण करता है।

मणिपुर पहाडियाँ:-

  • कटक तथा घाटी के प्रकार की स्थलाकृति इसकी मुख्य विशेषता है।
  • लोकटक झील इसी श्रृंखला मे अवस्थित है।

उत्तरी कछार पहाडियाँः-

  • पहाडी क्षेत्र का अधिकतम भाग मेधालय तथा उत्तर पुर्वी श्रेणियों मे अवस्थित है।

मिजो पहाडियाँ:-

  • पहले लुशाई पहाडियाँ के नाम से जाना जाता है।
  • सीढीनुमा स्थलाकृति इसकी विशेषता है।

त्रिपुरा पहाडियाँ:-

  • कटक तथा घाटी वाली स्थालाकृति इसकी विशेषता है।

भौगोलिक अवस्थित के आधार पर हिमालय का वर्गीकरण:-

नाम                             अवस्थित                      विस्तार

पंजाब हिमालय   सिंधु तथा सतलज के बीच     500 किमी.

कुमायूँ हिमालय स्तलज तथा काली के बीच     320 किमी.

नेपाल हिमालय  कली तथा तिस्ता के बीच     800 किमी.

असम हिमालय  तिस्ता तथा दिंहाग के बीच     720 किमी.


महत्वपूर्ण पर्वत श्रेणी

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 हिमालय का अनुद्धैर्ध्य विभाजन 

हिमालय या हिमाद्रि:-

  • हिमालय श्रृंखला का उत्तरोतर भाग 6000 मी. की औसत उँचाई के साथ विश्व की उच्चतम श्रंृखंला है ।
  • इसमे विश्व की उच्चतम चोटी माउंट एवरेस्ट (8848 मी.), मकालू (8156 मी,) अन्नपुर्णा (8078 मी,) तथा भारत अधिकृत सर्वाेच्च चोटी कंचनजंधा (8598 मी,) एंव नंगा पर्वत (8126 मी,) सम्म्लिित है।
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लधु हिमालय:-

  • इसे हिमाचल हिमालय भी कहा जाता है जो देहरादुन द्धारा शिवालिक श्रेणी से अलग होता है।
  • कई प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटक स्थल यथा कांगडा, धर्मशाला, एंव डलहौजी यहीं स्थित है।

शिवालिक श्रेणीः-

  • जम्मु कश्मीर से अरूणाचल प्रदेश तक 2400 किमी. तक विस्तारित है।
  • इसकी उत्तरी सीमा मुख्य क्षेत्र प्रक्षेप भ्रंश है जो बाह्य हिमालय को लधु हिमालय से अलग करता है।
  • इसकी दक्षिणी सीमा भारतीय गंगा का मैदान है 
  • यह उप हिमालय या बाह्य हिमालय भी कहलाता है।
  • पर्वत श्रृंखला का सबसे नवीनतम भाग जो ब्रहापुत्र से सिंधु तक फैला है।

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 अपनी याददाश्त कैसे बढ़ाएँ

हम पिछले अध्याय में बता चुके हैं कि मनुष्य का बेशकीमती आभूषण, औजार या शक्ति उसका दिमाग होता है। मनुष्य का अस्तित्व और उसकी पहचान उसकी बुद्धिमत्ता एवं ज्ञान पर निर्भर करती है।   

मनुष्य के प्रत्येक कार्य की सफलता भी उसके मस्तिष्क के सुचारु उपयोग पर ही निर्भर करती है, क्योंकि मनुष्य का मस्तिष्क यानी दिमाग ही सभी निर्णय लेता है कि उसे क्या करना है, कब करना है और कैसे करना है? अतः मस्तिष्क ही इंद्रियों को आदेश देता है, उनको नियंत्रित करता है और दूसरों की तुलना में उसके बौद्धिक ज्ञान के जरिए श्रेष्ठ बनाता है। इस प्रकार मनुष्य को जीवन में सफलताओं के चरम तक पहुँचाने में मस्तिष्क ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अब सवाल यह है कि क्या याददाश्त बढ़ाई जा सकती है?

 जवाब है-हाँ, याददाश्त बढ़ाई जा सकती है।

मनुष्य का मस्तिष्क चाकू की धार के समान होता है, जिसका नियमित इस्तमाल कर पर उसकी धार सदैव पैनी बनी रहती है, ठीक इसी प्रकार मस्तिष्क का ठीक से प्रयोग अथवा विकसित करने पर बुद्धि को भी जंग लग जाता है।




लोग यह सोचते हैं कि उनकी मानसिक स्थिति पर उनका वश नहीं चलता। उनके विचार उनकी मनोदशा और इच्छा के अनुरूप नहीं हो सकते। ऐसे लोग मानते हैं कि ऐसी निराशाजनक मानसिक स्थिति बाप-दादा से उन्हें विरासत में ही मिली है। वे इसे कतई नहीं बदल सकते। ऐसा सोचना पूरी तरह गलत है। आप अपने विचार और मानसिक स्थिति को ठीक उसी तरह बदल सकते हैं, जिस तरह से अपने कपड़े और वेशभूषा बदलते हैं। इसके लिए आप अपने अंदर उत्साह और साहस का संचार करें, सफलता की कल्पना करें तथा रोजाना अपने मानसिक विकास के लिए इन तकनीकों का प्रयोग कर अभ्यास करें।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि आप अपनी याददाश्त बढ़ाने मानसिक विकास करने में अवश्य सफल होंगे। _मानसिक विकास एवं याददाश्त बढ़ाने की प्रक्रिया में सबसे पहले तो दिमागी शब्दकोश से 'असंभव' शब्द हटा दें। कारण यह है कि आपके मानसिक विकास और याददाश्त बढ़ाने में यह 'असंभव' शब्द एक बहुत बड़ी बाधा है। इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है। आप यह कदापि सोचें कि आपका जन्म निराश होकर मृत्यु को गले लगाने के लिए हुआ है। 

सच तो यह है कि आप इस दुनिया में अपने विचारों, अपने सत्कार्यों और अपनी मधुर मुसकान से चार चाँद लगाने आए हैं। इसलिए आशावादी बनें और हमेशा सफलता की कामना करें। यदि हम बंजर भूमि को जोतकर उपजाऊ बना सकते हैं तो क्या हम अपने मन से निराशा, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, डर इत्यादि जैसी खर-पतवार यानी घास-फूस को उखाड़कर वहाँ सुंदर सुगंधित फूल नहीं खिला सकते?

खिला सकते हैं-जरूर खिला सकते हैं। इसके लिए चाहिए स्वस्थ सोच, सकारात्मक नजरिया और स्वयं पर विश्वास।

 अपने आपको, क्या यह सब आप में है? यदि हाँ, तो आप एक स्वस्थ मस्तिष्क के मालिक हैं और स्वस्थ मस्तिष्क को विकसित करके सफलता की उच्चतम स्थिति को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

 


भूलना याददाश्त की कमजोरी नहीं

भूलना याददाश्त की कमजोरी नहीं, मगर कुछ लोग भूलने की प्रक्रिया को बीर समझकर चिंतित हो उठते हैं कि उनकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है। इस भ्रम के चलते वे अनेक दूसरे रोगों, जैसे-चिंता, कुंठा आदि के शिकार हो जाते हैं।

भूलना कोई बीमारी नहीं है और ही इसका अर्थ यह है कि आपकी याददाश्त कमजोर हो रही है। भूलना प्रकृति-प्रदत्त एक अति आवश्यक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क का संतुलन बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। कारण, अगर आप पूरे दिन की घटी सभी घटनाओं को याद रखने की कोशिश करेंगे तो मन को दुखाने और पीड़ा पहुँचानेवाली बहुत सी नकारात्मक सूचनाओं से आपके मस्तिष्क में 'विस्फोट' हो जाएगा और आपकी याद रखने की क्षमता भी नष्ट हो जाएगी। 'विस्फोट' का तात्पर्य यहाँ बम जैसे किसी धमाके से नहीं है। इसका मतलब मस्तिष्क पर पड़नेवाले अत्यधिक बोझ, तनाव एवं दबाव से है। कहने का अर्थ यह है कि मस्तिष्क जितना तनाव-मुक्त होता है उतना ही ज्यादा अच्छा सोचता और काम करता है। इसके विपरीत स्थिति में मस्तिष्क कुंद होने लगता है।

विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक शोध से पता चला है कि मानव-मस्तिष्क में सूचनाओं को एकत्रित करने की जो प्रक्रिया है, वह हमेशा उन्हीं सूचनाओं को स्टोर करती है, जिन्हें मानव प्राथमिकता देता है। जिन सूचनाओं और घटनाओं को मानव-मस्तिष्क अनावश्यक मानता है, उन्हें स्मृति-पटल से मिटाता रहता है, ताकि आनेवाली नई सूचनाओं, घटनाओं और बातों को मस्तिष्क में पर्याप्त स्थान मिल सके। यदि ऐसा हो तो रोजाना घटनेवाली घृणा, द्वेष, क्रोध आदि से भरी सभी घटनाएँ मस्तिष्क में एकत्र होने लगेंगी, जिस कारण मस्तिष्क में 'विस्फोट' होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।

याद रखें। दूसरों की गलतियों को क्षमा करना अच्छी बात है और उन्हें भूल जाना उससे भी अच्छा


बात है, क्योंकि दूसरों की गलतियों को भूल जाने से हमें आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। इसलिए, हमें दूसरों से अच्छा व्यवहार बनाए रखने के लिए, उनकी गलतियों को भूलना बहुत जरूरी है।

परमपिता परमेश्वर ने बहुत ही कुशलता से मानव-मस्तिष्क की रचना की है। यदि कुछ बातों को भूल भी जाते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया इसलिए आप इसे कोई रोग या याददाश्त की कमजोरी मानकर चिंतित हों।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, मानव-मस्तिष्क प्रतिदिन घटी 90 से 95 प्रतिशत घटना सूचनाओं को डंप मेमोरी में भेज देता है।